
रामकथा से पौणारिक संस्कृति एवं
मानवीयता होती है सुदृढ़-जगत्गुरू
रायबरेली। बहुप्रशिक्षित आध्यात्मिक पर्व मानस संत सम्मेलन गुरूवार को स्थानीय रिफार्म क्लब के मैदान में प्रारम्भ हुआ। सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए पधारे काशी एवं हरिधाम पीठाधीश्वर श्री अयोध्याधाम जगतद्गुरू रामानंदाचार्य, श्री 108 स्वामी रामदीनेशाचार्य जी महाराज के आगमन पर मानस संत सम्मेलन समिति के पदाधिकारियों ने मैदान के स्वागत द्वारा से मंच तक गुलाबों की पंखुरिया बरसाते हुए घण्टा व शंख ध्वनि के साथ मार्ग प्रशस्त किया।
जगतगुरू के मंचासीन होने के साथ ही यज्ञाचार्य देवी प्रसाद पाण्डेय द्वारा समिति के अध्यक्ष गनेश गुप्ता के कर कमलों से वेद मंत्रो के साथ पादुका पूजन सम्पन्न कराया। इस अवसर पर मंचा संचालक अम्बिकेश त्रिपाठी द्वारा स्वास्तीवाचन पाठ किया गया। उपरान्त समिति के महामंत्री श्री ज्योर्तिमयानन्द जी महाराज, मंत्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ला, राधेश्याम कर्ण, समिति के कोषाध्क्ष उमेश सिकरिया, सुक्खू लाल चांदवानी, राकेश कक्कड़, राकेश तिवारी, आशीष अवस्थी, महेन्द्र अग्रवाल, राघवेन्द्र द्विवेदी, संजय जीवनानी पुष्पहार निवेदित कर स्वागत कर आशीर्वाद प्राप्त किया गया।
त्रिदिवसीय अध्यात्मिक पर्व के प्रथम दिवस पर जगतद्गुरू रामानंदाचार्य, श्री 108 स्वामी रामदीनेशाचार्य जी महाराज द्वारा राम कथा के माध्यम से पौणारिक संस्कृति सनातन पूजा पद्द्धि के साथ ही मानवीयता एवं सहृदयता पर विस्तार से प्रकाश डाला। जगद्गुरू ने अपने सम्बोधन में कहा कि राम यदि वन को नहीं जाते तो अयोध्या के राजा बनते और चक्रवर्ती सम्राट बन जाते। परन्तु वन गमन से राम मर्यादा पुरूषोत्म बन गये। पौणारिक संस्कृति पर जगद्गुुरू ने कहा कि श्रीराम की बारात जब जनकपुर पहुॅची तो महाराज जनक द्वारा श्रीराम के चरण पखारने के अवसर पर दशरथ जी के ऑखो से आंशू छलकने लगे महाराज के सेवकों ने आकर महाराज से कहा कि महाराज दशरथ आपके समथी के ऑखो से आंशू छलक रहे है आप इसकी जानकारी प्राप्त करें ।महाराज जनक बड़ी विनम्रता के साथ आदर से पूछा तो महाराजा दशरथ ने कहा कि जनक आप बहुत बड़भागी हो जा श्रीराम के चरण पखारने के अवसर प्राप्त हुआ है। यह हमारी पौणारिक संस्कृति है, गुरूदेव ने कहा कि हमारी पूजा पद्धति पूरब से पश्चित उत्तर से दक्षिण सबको जोड़ती है। महाराज ने कहा कि दक्षिण से नारियल, पूरब से सुपाड़ी, पश्चिम से वस्त्र आदि सब हमारे पूजा में प्रयोग किये जाते है। राम कथा पर विस्तार से बोलते हुए महाराजश्री ने कहा कि आत्मियता, मानवियता प्राप्त होती है और मानवीयता से मनुष्य के अन्दर सुहृदयता उत्पन्न होती है। यह सभी चीजे पशुओ में नही मिल सकती है। विवाह के अवसर पर अपने प्रवचन में जगतद्गुरू रामानंदाचार्य, श्री 108 स्वामी रामदीनेशाचार्य जी महाराज ने कहा कि मिथिला में सोने जवारात जरित पिन से पत्तल में चवाल, दाल, सब्जी परोसी गयी। चावलदाल सब्जी सम्मिलित करके भोजन ग्रहण किया जाता है। वर्तमान खानपान पर गुरूदेव कटाक्ष करते हुए बताया कि पूड़ी और पापड़ को तोड़ कर खाया जाता है जबकि दाल व चावल को सम्मिलित करने खाया जाता है। शादी विवाह दो परिवारो के मिलन का समय होता है तो खान पान भी सम्मिलित होना चाहिए ना कि तोड़ने वाला। पूड़ी व पापड़ को बिना तोड़े नहीं काया जा सकता है। पिछले दिनों राम चरित मानस के चलाने की चर्चा पर जगदगुरू ने कहा कि ऑखो को बंद कर लेने से सूर्यास्त नहीं हो जाता है। जो आज पन्ने जला रहे है उनके पूर्वज इसी रामचरित मानस का पाठ किया करते थे और जीवन यापन करते हुए स्वर्ग को सिधार गये।
प्रवचन के उपरान्त आरती गयी उपरान्त प्रसाद वितरण का कार्यक्रम आयोजन किया गया। प्रसाद के रूप में पूड़ी सब्जी का वितरण हेमकुण्ड पब्लिक स्कूल के प्रबन्धक पुष्पेन्द्र सिंह की ओर से किया गया।
इस अवसर पर जनपद के प्रमुख व्यवसायी हरिहर सिंह सहित सैकड़ो लोेगों ने कथा का श्रवण किया। जगद्गुरू से पूर्व श्रीरामदास रामायणी, देवी शशि भारती, एवं आलोक रामायणी जी द्वारा प्रवचन दिया गया। श्री आलोक रामायणी जी ने अपने प्रवचन में राम बारात के स्वागत एवं श्रृंगार का वर्णन के साथ ही पौणारिक संस्कृति पर मार्मिक प्रवचन दिया। साथ ही कन्यादान पर विशेष महत्व बताते हुए श्री रामायणी जी ने कहा कि कन्यादान करने पर पिता के गोत्र से पत्नी पति के गोत्र में प्रवेश करती है।